उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) जिले से लगे हुये मिर्जापुर जिले केऐतिहासिक चुनार नामक स्थान के समीप ग्राम में एक सामान्य धर्मनिष्ठ हिन्दूपरिवार में जन्म। बचपन से ही धार्मिक अनुष्ठानों क्रिया कलापों में रुचि तथा -भागीदारी। शनैः शनै वय बढ़ने के साथ जिज्ञासा का प्रसार तदनुसार सीमितसाधनों व परिवेश में रहते हुये कुछ करने की उत्कट इच्छा तथा इसी क्रम में धर्मक्षेत्र के केन्द्र प्रयाग व वाराणसी से सानिध्य व निकटता। स्त्री वर्ग की उपेक्षा,असमानता का व्यावहारिक प्रत्यक्षीकरण करने के उपरान्त मन की खिन्नता,फलस्वरूप व्यवस्था के प्रति विद्रोह। प्रारम्भ में सामाजिक असमानता के क्षेत्र मेंकार्य का प्रारम्भ। स्त्रयों के प्रति बरती जा रही, भेदभाव की स्थिति के विरूध्दसंघर्ष। वाराणसी में रहकर जाति, धर्म, क्षेत्र से ऊपर समभाव से महिलाओं केकल्याणार्थ विभिन्न कार्यों का सुचारू संचालन व सम्पादन।
क्रमशः आवश्यक समझकर धर्म क्षेत्र में प्रवेश। प्रयाग के धर्म-क्षेत्र में रहकरविरक्त नागा साधु के सानिध्य में धर्म के अभिप्राय, व्यवहार व कर्म की पवित्रता,सदाचरण के मर्म का तत्वपरक ज्ञान प्राप्त किया, परिणामस्वरूप विरक्ति कीधारणा, गुरूभक्ति का भावग्रहण व सन्यास दीक्षा। गुरू के आदेशानुसार धर्म क्षेत्रमें सक्रिय भागीदारी ।
तत्वतः स्त्री-पूरुष के अभेद की मान्यता के विपरीत स्त्री वर्ग की नगण्यता कोदृष्टिगत करते हुये इतिहास की अनिवार्यता स्वरूप धर्मपद शंकराचार्य पर स्त्रीकी समान दावेदारी हेतु स्वयं को शंकराचार्य की उद्घोषणा तदनुसार स्वतन्त्र स्त्री अखाड़ा की परिधि में श्री सर्वेश्वर महादेव बैकुण्ठ धाम मुक्ति द्वार अखाड़ा परी कीस्थापना व संचालन।