गायत्री त्रिवेणी प्रयाग पीठ

|| एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति ||

यह पीठ चिरकाल से सनातन रूप में प्रयाग में स्थित है जो कि त्रिवेणी पोषित है। गंगा, युमना, सरस्वती की धारा-इड़ा पिंगला सुषुम्ना रूपी-मानव शरीर के मूलाधार से संयुक्त होकर इस तीर्थ राज पर सम्मिलित होकर एक ज्ञानपीठ स्थापित करती है जिसकी अधिष्ठात्री गायत्री। गायत्री, सावित्री, सरस्वती सृष्टिकर्ता की त्रिशाक्ति है जिनसे सृष्टि का प्राकट्य व स्थिति है। वेद ज्ञान का स्वरूप है। पीठ की अधिष्ठात्री देवी गायत्री वेदमाता है।
वर्तमान में इस निसर्ग पीठ की संचालिका जगद्गुरू शंकराचार्य त्रिकाल भवन्ता सरस्वती जी महराज हैं जिनका मिशन सत्य के नैसर्गिक मूल्यों को स्थापित करना है। समाज की विकृत रूढि़यों-परम्पराओं को स्वस्थ स्थिति में लाने हेतु जनमानस को जागरूक करते हुए आह्वान है-आत्म चिंतन करते हुए सामूहिक प्रयास-एकजुटता के साथ सशक्त राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए भारत माँ को सतत गौरवपूर्ण बनाये रखने का।
धर्मक्षेत्र देश को सुदृढ़ राष्ट्र को सशक्त करने का सबसे कारगर माध्यम है। धर्म एक सुसंस्कृत आचरण की व्यवस्था प्रदान करता है। यह क्षेत्र जितना स्वच्छ होगा समाज वैसा ही उदात्त होगा। अतएव एक न्याय संगत धार्मिक व्यवस्था की सदा ही अपरिहार्यता बनी रहेगी।गायत्री त्रिवेणी प्रयाग पीठाधीश्वर त्रिकाल भवन्ता सरस्वती जी महराज का कार्यक्षेत्र नारी-शक्ति को फोकस करता हुआ, धर्मक्षेत्र में समानता पर लाना है। नारी, समाज, परिवार, राष्ट्र की रीढ़ (मेरू) जैसी है। वह उचित स्थान पर होनी चाहिये, तभी उत्थान की आशा की जा सकती है।