विश्व में अनन्य, त्रिवेणी उद्भूत, निसर्ग पीठ। सुरसरि, सूर्यसरि के मध्य अजस्र
प्रवाहयुक्त वाग्देवी की मधुर सुरलहरियों - तरंगो से झंकृत देदीप्यमान प्रयाग स्थित गायत्री त्रिवेणी प्रयाग पीठ। विश्व का जाग्रत बौद्धिक संपदायुक्त अक्षयपीठ। बह्मा की प्रथमयज्ञस्थली प्रयाग। वेदमाता गायत्री जनित ऋतपीठ, निसर्ग नियम संचालित ऋजु (सरल)पीठ।
सृष्टि व्यापार में मानव उत्कृष्ट कृति है जिसने सृष्टि की तारतम्यता को अबाध बनाये
रखने हेत धर्म की व्यवस्था स्थापित की, इसे ही वेद निःसृत सनातन धर्म कहा गया। गायत्रीत्रिवेणी प्रयाग पीठ इसी वेद सम्मत ऋतधर्म पर आधारित रहकर इसका पोषक, संवर्दधकव प्रचारक है।
पीठ के रक्षण व कार्य प्रसार हेतु श्री सर्वेश्वर महादेव बैकुण्ठधाम मुक्तिद्वार अखाड़ा
परी जिसे संक्षेप में अखाड़ा परी अथवा परी अखाड़ा का संबोधन मिला, शस्त्र व शास्त्रधारक स्त्री संयासिनों द्वारा संचालित होता आ रहा है। देश के बाहर विदेश तक में इसमहिला अखाड़े की पहचान स्थापित है। अखाड़ा द्वारा क्रियान्वित किये जाने वाले पारंपरिककार्यों के अतिरिक्त सामाजिक व शैक्षणिक क्षेत्र में भी अखाड़े की संयासिनों द्वारा योगदानकिया जाता है।
प्रयागराज स्थित अखाड़ा मुख्यालय पर कार्य संपादन के साथ- साथ ही अखाड़े ने
नासिक, हरिद्वार, उज्जैन तीर्थो पर आयोजित हये कुंभ पर्वो पर अपनी क्रियात्मक उपस्थितिप्रकट कर पीठके मिशन को धर्मजगत में स्थापित करने का कार्य संपन्न किया है।
विश्व में नारी वर्ग का यथोचित स्थान व सम्मान सुनिश्चित करने में पीठ तथासंबद्ध अखाड़े की प्रतिबद्धता है जिसके लिये संस्था द्वारा सभी कार्यविधि अपनायी जातीहै तथा सार्थक परिणाम प्रत्यक्ष हो रहे हैं। प्रतिर्ष मानपत्र व प्रशस्ति पुरस्कार प्रदानकरने की हमारी परम्परा का निर्वहन होता है।
गायत्री त्रिवेणी प्रयाग पीठ विश्व में समान वैश्विक स्तर के सरल, सामान्य निसर्गनियम आधारित धर्म स्थापना का पक्षधर व समर्थक है तथा इस मिशन में देश, वर्ग-जातिकी नगण्यता से ऊपर उठकर विश्व के समस्त प्राणी समुदाय के कल्याण की कामना
करने के साथ कटिबद्धता भी है।
अपने प्रादुर्भाव से लेकर अब तक के अल्पकाल में ही संस्था की सदस्यता मेंसराहनीय वृद्धि हुयी है। संस्था में श्रीपंच / प्रमुख जगद्गुरू शंकराचार्य त्रिकाल भवन्तासरस्वती जी महाराज की प्रेरणा व कर्तत्यनिष्ठा के फलस्वरूप महामण्डलेश्वर, श्रीमहन्ततथा सदस्यगण की संख्या पचास हजार तक पहुँच रही है जो उत्तरोत्तर वृद्धि की ओरअग्रसर है।