|| यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे ||
ऊं आत्मा व इदमेक एवाग्र आसीत नान्यत् किंचनमिषत् | स ईक्षत लोकान्तु सृजा इति | असद् वा इदमग्र आसीत् ततौ वै सद् अजायत | तदात्मानं स्वयम् अकुरुत तस्मात्तत्सुतमुच्यत इति | यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह | आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान न विभेति कदाचन ||
" सर्वम् खल्विदम् ब्रह्म "
यह जो है सब एक ब्रह्म ही है, इसके अतिरिक्तम अन्य कुछ नही है | त्रिवेणी पीठ का यही महावाक्य है |यह आद्यापीठ है | गायत्री, सावित्री, सरस्वती त्रिशक्ति का समन्वित रूप त्रिवेणी पीठ है | इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना का संधि-स्थल व गंगा, यमुना, सरस्वती का मिलन बिन्दु संगम स्थल त्रिवेणी प्रयाग विश्व का अनन्य तीर्थस्थल प्रयागराज है | मान्यता है कि मानव शरीर पिण्ड संपूर्ण ब्रह्माण्ड की एक लघु इकाई के रूप में है | इस प्रकार इसमें वह सब समाहित हैं जो ब्राह्माण्ड में हैं | वैश्विक ऊर्जा का प्रकटीकरण चेतना है जो जीवन के रूप में प्रस्फूटित होती है | यह एक साततत्य है, प्रवाह है, गति है, निर्बाधता है जिसमें निरंतरता है | इसी ऊर्जस्विता की संवाहक शरीर की नाड़ियाँ हैं जिनका सामान्य परिचय इडा, पिंगला, सुषुम्ना के नाम से विख्यात है |
भौतिक जगत में क्रमशः ये ही भागीरथी, गंगा, यमुना व सरस्वती हैं जो त्रिवेणी पीठ की अधिष्ठात्री गायत्री सावित्री सरस्वती त्रिवेणी रूपिणी होकर प्रयागराज में वेदज्ञान की जननी हैं | वेद, ज्ञान का भौतिक रूप है जिसकी पृष्ठि सत्य व ऋत है यथार्थ में सत्य का निसर्ग रूप ऋत है जिसका अवलम्बन आश्रय गायत्री जनित मूल वेद पीठ त्रिवेणी पीठ है | इस प्रकार त्रिवेणी पीठ निसर्ग पीठ है, ऋत पीठ है जहाँ से वेदज्ञान निःसृत है तथा महाप्रलय में पुनः पुनः अपने अक्षय तूणीरवत त्रिवेणी स्थित महावट (अक्षव वट) में समाहित होते रहने की क्रमिकता, निरंतरता में गतिमान है | मान्यता है कि ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ त्रिवेणी प्रयाग में अनुष्ठित किया जिनके कमण्डल से ज्ञान गंगा निःसृत हैं | ज्ञान का प्रतीक सूर्य है, समस्त चर-अचर प्रजा समूह का प्राण तथा यमुना प्राण का प्रतीक उष्णता की वाहक सरस्वती सुष्म्ना चेतना वाहक हैं | और इस प्रकार इनके संगम पर, सम्मिलन पर ज्ञान कर्म उपासना की त्रिवेणी सृजित होतीं हैं जो त्रिवेद ऋग, यजु:, साम की पृष्ठभूमिवत् निर्मित होती है | यही त्रिवेणी पीठ है |