प्रत्येक पीठ से संबद्ध एक मठ होगा जिसे त्रिवेणी मठ कहा जायेगा | यह निवास, भोजनादि व साधनास्थल के रूप में प्रयुक्त होगा | प्रधानपीठ के अतिरिक्त दस अन्य पीठ शाखा रूप में स्थापित किये जायेंगे तथा इन्हें विश्व स्तर पर कही पर भी स्थापित किया जा सकेगा | त्रिवेणी पीठ वैदिक वाड.मय जिसमें मंत्र संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, उपवेद, वेदांग आयेंगे पर सर्वागीण कार्य करेगा | त्रिवेणी पीठ से संबद्ध आखाड़ा का गठन है जिसे संक्षेप में “ अखाड़ा परी ” के नाम से जाना जाता है | आखाड़ा का गठन व कार्य वही है जो सामान्यतया प्रचलित अखाड़ों के संदर्भ में सनातन धर्म की रक्षा से जुड़ा हुआ है | इसमें शस्त्र व शास्त्र दोनों का प्रयोग व्यावहारिक है | विशेष : जैसा कि पूर्व में उल्लिखित है त्रिवेणी पीठ मूलतः आद्यापीठ है अतएव आदिशाक्ति आद्या इस पीठ की इष्ट हैं जिन्हें उमा हेमावती रूप में स्मरण करने की अपेक्षा व अनिवार्यता की जाती है |