आद्या शंकराचार्य जगद्गुरू
श्री त्रिकाल भवन्ता सरस्वती जी महाराज
पीठाधीश्वर
गायत्री त्रिवेणी प्रयाग पीठ

प्रयागराज महाकुंभ मेला स्नान तिथियां

स्नान अनुष्ठान कुंभ में किया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यद्यपि मकर संक्रांति से शुरू होने वाले प्रयागराज महाकुंभ के सभी दिनों में पवित्र जल में डुबकी लगाना पवित्र माना जाता है, फिर भी कुछ विशिष्ट शुभ स्नान तिथियां हैं।

आद्या शंकराचार्य जगद्गुरू
श्री त्रिकाल भवन्ता सरस्वती जी महाराज

संक्षिप्त जीवन परिचय

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) जिले से लगे हुये मिर्जापुर जिले केऐतिहासिक चुनार नामक स्थान के समीप ग्राम में एक सामान्य धर्मनिष्ठ हिन्दूपरिवार में जन्म। बचपन से ही धार्मिक अनुष्ठानों क्रिया कलापों में रुचि तथा -भागीदारी। शनैः शनै वय बढ़ने के साथ जिज्ञासा का प्रसार तदनुसार सीमितसाधनों व परिवेश में रहते हुये कुछ करने की उत्कट इच्छा तथा इसी क्रम में धर्मक्षेत्र के केन्द्र प्रयाग व वाराणसी से सानिध्य व निकटता। स्त्री वर्ग की उपेक्षा,असमानता का व्यावहारिक प्रत्यक्षीकरण करने के उपरान्त मन की खिन्नता,फलस्वरूप व्यवस्था के प्रति विद्रोह। प्रारम्भ में सामाजिक असमानता के क्षेत्र मेंकार्य का प्रारम्भ। स्त्रयों के प्रति बरती जा रही, भेदभाव की स्थिति के विरूध्दसंघर्ष। वाराणसी में रहकर जाति, धर्म, क्षेत्र से ऊपर समभाव से महिलाओं केकल्याणार्थ विभिन्न कार्यों का सुचारू संचालन व सम्पादन।
क्रमशः आवश्यक समझकर धर्म क्षेत्र में प्रवेश। प्रयाग के धर्म-क्षेत्र में रहकरविरक्त नागा साधु के सानिध्य में धर्म के अभिप्राय, व्यवहार व कर्म की पवित्रता,सदाचरण के मर्म का तत्वपरक ज्ञान प्राप्त किया, परिणामस्वरूप विरक्ति कीधारणा, गुरूभक्ति का भावग्रहण व सन्यास दीक्षा। गुरू के आदेशानुसार धर्म क्षेत्रमें सक्रिय भागीदारी ।
तत्वतः स्त्री-पूरुष के अभेद की मान्यता के विपरीत स्त्री वर्ग की नगण्यता कोदृष्टिगत करते हुये इतिहास की अनिवार्यता स्वरूप धर्मपद शंकराचार्य पर स्त्रीकी समान दावेदारी हेतु स्वयं को शंकराचार्य की उद्घोषणा तदनुसार स्वतन्त्र स्त्री अखाड़ा की परिधि में श्री सर्वेश्वर महादेव बैकुण्ठ धाम मुक्ति द्वार अखाड़ा परी कीस्थापना व संचालन।

अखाड़ा परी और उनकी जीवन कहानी

|| आयातु वरदा देवी अक्षरं ब्रहम सम्मितम ||
|| गायत्री छंदसाम्‌ माता इदम ब्रह्म जुषष्व न: ||

संस्था का उद्देश्य

वर्ष 2013 के प्रयाग महाकुम्भ के दौरान पूरे शास्त्रीय विधिविधान से स्थापित परी अखाड़े का पहला उद्देश्य है कि महिला साध्वियां सुरक्षित रूप से साधना पूजा कर सके तथा दैवी शक्तियाँ प्राप्त कर के समाज और नारी उत्थान में सहयोग दे सकें।
गायत्री त्रिवेणी प्रयाग पीठाधीश्वर त्रिकाल भवन्ता सरस्वती जी महराज का कार्यक्षेत्र नारी-शक्ति को फोकस करता हुआ, धर्मक्षेत्र में समानता पर लाना है। नारी, समाज, परिवार, राष्ट्र की रीढ़ (मेरू) जैसी है। वह उचित स्थान पर होनी चाहिये, तभी उत्थान की आशा की जा सकती है।
दूसरा उद्देश्य है कि जितने भी देवी धाम एवं शक्ति पीठ है, वहाँ पुजारियों के रूप में महिलाओं की नियुक्ति की जानी चाहिए। देवियों के श्रृगांर आदि के कार्य महिलाओं को सौंपा जाये।
तीसरा उद्देश्य है महिलाओं की घर वापसी का प्रबन्ध करना। अखाड़ो में आयी महिलाओं को शरण देने के बाद उनकी समस्याओं को दूर कर के घर भेजना। महिला अखाड़े से जाने पर समाज उस स्त्री को स्वीकार कर लेता है।
गुरू मन्त्र के लिए समर्पित महिला को संस्कार युक्त दीक्षा देना।

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